प्रिय दोस्तों आज के इस पोस्ट में हम सिर्फ बचपन और Bacchon ka khel, के बारे में बात करेंगे, और जानेंगे की आज के 12 से 18 साल के बचपन में और आज के डिजिटल दुनियाँ के
बचपन में क्या अंतर है, इसके अलावा चलिये और जानते हैं Bacchon ka khel, के नाम।
Bacchon Ka Khel -
बचपन आज के तकरीबन 12 से 18 साल पहले का बचपन
बचपन यह एक ऐसा शब्द और समय होता है जिसमें हर कोई जीना चाहता है, जबतक इंसान छोटा होता है उसे लगता है की बड़ा होने में मजा है और ओ जल्दी बड़े होने का सपने देखता और उसमें जीना चाहता है, पर उस नन्ही सी जन को क्या पता की बड़ा होने पर क्या होता है।
लेकिन फिर भी ओ मस्त होकर अपनी ज़िंदगी जीता है और बड़े होने का सपना देखता रहता है, सच कह रहा हूँ बचपन शब्द सिर्फ लिखने मात्र से दिल को छू जाता है ऐसा लगता है काश फिर से उसी समय में जा पता तो ज़िंदगी को जी भर के जीता, सच में बचपना ही ज़िंदगी का एक ऐसा समय है जिसे हर कोई फिर से जीना चाहता है।
क्या बेफिक्र ज़िंदगी थी क्या दोस्त हुआ करते थे किसी से कोई दुश्मनी नही कोई
बैर नही सुबह दोस्तों से झगड़ा करो लड़ो फिर शाम को एक साथ खेल के मैदान में कोई खुन्नस
नही बस जिये जा रहे हैं, काश फिर से ओ दिन आ जाए तो कितना अच्छा
होता।
हर व्यक्ति बचपन में बहोत मजे करता है बिना टेंसन के ज़िंदगी होती है, कोई टारगेट नही, कोई ऑफिस नही, कोई बॉस नही, बस मस्त ज़िंदगी के मजे उठा रहे होते हैं, आज के तकरीबन 12 से 18 साल पहले की बचपन बहोत ही मजेदार थी।
दिन भर दोस्तों के साथ खेलना – कूदना मौज मस्ती करना, खेल तो इतने थे की दिन छोटे पड जाते थे, गाँव की गलियों में दिन भर शोर – शराबा, खेल से जब थक जाए तो दिन में दो चार गन्ने को तो चूस ही जाते थे।
फिर शाम को
किसी के भी खेत से चने, मटर, उखाड़ कर भूनना
और चार – छः दोस्तों के साथ बैठ कर आराम से भुने हुये मटर और चने का आनंद लेना सच में
बहोत याद आते है ओ बीते हुये दिन। “लव यू ज़िंदगी”
बचपन आज के डिजिटल समय का बचपन
बचपन आज के इस डिजिटल समय के बचपन से पैरेंटस बहोत खुश है क्योंकि बच्चों को सम्हालने के लिए ज्यादा मेहनत और ध्यान नही लगाना पड़ता है, बस बच्चा जैसे ही रोये हाथ में मोबाइल दिया और खो गये अपने डिजिटल दुनियाँ में, पर सच बात तो ये है की ये डिजिटल दुनिया हम इन्सानों को कमजोर और बेकार बना दे रही है।
पहले के बच्चे खेलते थे जिससे
उनका शरीर मजबूत होता था और भी बच्चों के साथ खेलने के कारण उनकी नैतिक समझ, सामाजिक समझ, बहोत बढ़ जाता था, पर आज कल बस चसमें का नंबर और बीपी बढ़ रहा है और कुछ भी नही।
माना की डिजिटल होने से मानव जीवन में बहोत सुविधाए बढ़ गई है पर इंसान से इंसान की जो दूरी बढ़ी है ना एक बार उसे सोच कर देखिये रूह काप जाएगी, मै नही कहता की डिजिटल दुनियाँ अच्छी नही है हमें इसको खत्म करना चाहिए मै बस इतना कहना चाहता हूँ डिजिटल का बस अपने जरूरत के हिसाब से इस्तेमाल किया जाए।
आज कल शारीरिक मेहनत ना के बराबर होता है पहले के अपेक्षा और इसकी बहोत ही ज्यादा जरूरत है, हमारे समाज में जीवन के बारे में और अपने शरीर के बारे में कुछ भी नही बताया जाता है, इसे हमारे समाज को समझने की जरूरत है और इस पर अमल करने की जरूरत है, आप खुद सोचिए डिजिटल दुनियाँ से कम करने में आसानी तो हुई है पर इससे कुछ और भी हुआ है इंसान से इंसान के बीच दूरी।
हमें सुबिधा मिला है तो हमारे समाज के लोगों को खुश होना चाहिए न पर आज कल हर एक तीसरा इंसान टेंसन में है और उसे बीपी है, पर पहले तो ऐसा नही था सौ में कहीं एक दो को होता था, ये आराम हमें और हमारे समाज को एक दिन ले डूबेगा।
मै
गारंटी से कहता हूँ की जिस तरह लोग अपने जीवन में टेंसन ले कर चल रहे है आने वाले कुछ
सालों में हमारे समाज की एक बड़ी आबादी सिर्फ टेंसन लेने के कारण आत्महत्या करेंगी।
Bacchon Ka Khel - बचपन में खेले जानें वाले खेल
बचपन में बहोत सारे खेल हुआ करते थे जिन्हें हर कोई जरूर खेला होगा, Bacchon Ka Khel के नाम निम्नलिखित है।
- छिपन – छिपाई
- गिल्ली डंडा
- चोर – सिपाही
- लंगड़ी
- लखनिक – लखना
- चिड़िया उड़
- काँच की गोली
- खो – खो
- रस्सा – कस्सी
- पिट्टू गरम
- रस्सी कूद
- कूत – कूत
- अंताक्षडी
- कबड्डी
- पोशम्पा
- गुट्टी
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निष्कर्ष -
आज इस पोस्ट में हमनें Bacchon ka khel, के बारे में जाना और बचपन से संबन्धित कई जानकारी हासिल की, और हमें जाना की आज के बच्चों का बचपन कैसा है और बीते 12 से 18 साल के पहले के बच्चों का बचपन कैसा था, अगर आप को ये पोस्ट अच्छा लगा हो तो इसे अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें। धन्यवाद